इस तेज चलती हुई दुनिया मे हम सब बड़े काम करने मे लगे हुए है और इस बड़े काम को करने के चक्कर मे छोटी छोटी चीजों को कैसे नज़र अंदाज़ करते है। सिर्फ मै नही आप नही हम सब इन्ही झूठी और खोखली चीजों मे उलझे हुए है, इसी सोच पे ये कविता लिखी है। ये कविता किसी न किसी रूप मे हमसे जुड़ी हुई है। 

 

 

| जिंदगी की तलाश मे |

 

 जिंदगी की तलाश मे,
जिंदगी बीत गई,

सुख की तलाश मे,
खुशियाँ बीत गई,

वक़्त की तलाश मे,
लम्हे बीत गए,

लोगों की तलाश मे,
लोग छुट गए,

ख्वाबों के दौड़ मे,
सपने छुट गए,

बड़ा होने के दौड़ मे,
जवानी छुट गयी,

मुस्कुराहटों के दौर मे,
हसना भूल गए,

दौड़ वाले दौर मे,
चलना भूल गए, 

इस दिखावे की दुनिया मे,
हम खुद को भूल गए।  


--संदीप पंडित

Comments

Popular posts from this blog