ये कविता उन लोगो के आधार पर लिखी गई है जो अपने ही देश में रहे के अपने देश के हानि के लिए कार्य करते है,
पढ़े और अपना मत दे। 


            ||  देश के बीमार  ||            

ये जो लोग है ,
मेरे देश के बीमार है ।

इनका ना कोई धर्म है ना जात है,
ये बस मेरे देश के बीमार है ।

इन्हें भगवान ना अल्हा का डर है,
ये मेरे देश के बीमार है ।

ये ना जाहिल है ना गवार है,
ये तो बस बीमार है ।

इन्हें कहा अपनों से प्यार है,
ये तो आज कल बीमार है।

इनके हरकत पे पूरा देश शर्मसार है,
पर इन्हें क्या ये तो बीमार है ।

लगता है देश में मचने वाला हाहाकार है,
क्युकी इस देश के कुछ लोग बीमार है ।

इन्हें नहीं जोड़ती किसी धर्म की तार है,
ये तो बस बीमार है ।

ये तो बस बीमार है।

                                                                                                            -संदीप पंडित








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