ये कविता उन लोगो के आधार पर लिखी गई है जो अपने ही देश में रहे के अपने देश के हानि के लिए कार्य करते है,
पढ़े और अपना मत दे।
पढ़े और अपना मत दे।
|| देश के बीमार ||
ये जो लोग है ,
मेरे देश के बीमार है ।
इनका ना कोई धर्म है ना जात है,
ये बस मेरे देश के बीमार है ।
इन्हें भगवान ना अल्हा का डर है,
ये मेरे देश के बीमार है ।
ये ना जाहिल है ना गवार है,
ये तो बस बीमार है ।
इन्हें कहा अपनों से प्यार है,
ये तो आज कल बीमार है।
इनके हरकत पे पूरा देश शर्मसार है,
पर इन्हें क्या ये तो बीमार है ।
लगता है देश में मचने वाला हाहाकार है,
क्युकी इस देश के कुछ लोग बीमार है ।
इन्हें नहीं जोड़ती किसी धर्म की तार है,
ये तो बस बीमार है ।
ये तो बस बीमार है।
-संदीप पंडित
मेरे देश के बीमार है ।
इनका ना कोई धर्म है ना जात है,
ये बस मेरे देश के बीमार है ।
इन्हें भगवान ना अल्हा का डर है,
ये मेरे देश के बीमार है ।
ये ना जाहिल है ना गवार है,
ये तो बस बीमार है ।
इन्हें कहा अपनों से प्यार है,
ये तो आज कल बीमार है।
इनके हरकत पे पूरा देश शर्मसार है,
पर इन्हें क्या ये तो बीमार है ।
लगता है देश में मचने वाला हाहाकार है,
क्युकी इस देश के कुछ लोग बीमार है ।
इन्हें नहीं जोड़ती किसी धर्म की तार है,
ये तो बस बीमार है ।
ये तो बस बीमार है।
-संदीप पंडित
instagram page :- https://instagram.com/kavya_rachnaye?igshid=zvsqdivnahwa
Follow us there to read our other fabulous writers.
Follow us there to read our other fabulous writers.
Comments
Post a Comment